मेरे वजूद से जुदा एक क़र्ज़,
ला-इलाज ला-इलाज, एक मर्ज़|
कोई कहता इसे बंदगी, कोई कहता इसे फ़र्ज़,
लाइलाज लाइलाज, एक मर्ज़|
कहा ना जो कभी लबों ने,
आज निगहों ने किया है अर्ज़|
लाइलाज लाइलाज, एक मर्ज़|
बदले उसने रिश्ते मौसम की तरह,
बदली हमने तस्वीर ऐ खुदा, क्या हर्ज़|
लाइलाज लाइलाज, एक मर्ज़|
मिला चैन जिस रिश्ते में,
उसने किया खोकला तुझे|
कहते हैं वफाओं का यही है तर्ज़|
लाइलाज लाइलाज, एक मर्ज़|
उसे दोस्त कहूं या खुदा ‘वीर’,
छुपके जिसने किये हर गुनाह दर्ज|
लाइलाज लाइलाज, एक मर्ज़|
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