हाल-ऐ-दिल खुद से कहते रहे,
अंगारों से हम जलते रहे|
ख़त्म नहीं हुआ मौत से सफ़र,
दिलों में हम धडकते रहे|
मिलते रहे सभी से मगर,
दायरों में हम सिमटते रहे|
है आवारगी अपनी फितरत में,
रास्तों से हम भटकते रहे|
हर मोड़ पे एक नया रंग लेके,
मौसमों से हम बदलते रहे|
अफवाह उसके बेनकाब आने की,
अरमानो से हम मचलते रहे|
मिटा के मुझे सुकून न मिला उसे,
काँटों से हम चुभते रहे|
जज़्बात किसी के मोहताज नहीं,
नाहक ही हम हिचकते रहे|
बस एक नज़र उस जलवागर की,
परवानो से हम जलते रहे|
फासलों से नजदिकियां बढती हैं,
दूरिओं से क्यों हम डरते रहे|
कितनी हसीं थी उससे मुलाक़ात,
फूलों से हम मेहेकते रहे|
न देखले कोई इन अश्कों को ‘वीर’,
बेचारों से हम सिसकते रहे|
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