तेरा हिस्सा कोई


मेरे ज़हन से लिपटा तेरा हिस्सा कोई,
लफ़्ज़ों की तलाश में भटकता किस्सा कोई|

जब नोचती है दुनिया मेरे सहमे दिल को,
मुझे सीने से लगा लेता है तेरा हिस्सा कोई|

ज़ुल्म ए फ़िराक से कब टूटा है ‘वीर’,
जोड़ देता है फिर खुदसे तेरा हिस्सा कोई|

4 Responses

टिप्पणी करे