किस खता की सजा है ये उम्र,
शायद हर वजह की वजह है ये उम्र|
एहद ऐ वफा सभी ज़ाया नहीं,
यु हीं इंतज़ार को कहते नहीं उम्र|
आपके ग़मों का एहसास है हमें,
यु हीं महकदे में गुजारी नहीं है उम्र|
कभी तो बंदे रूह से पुकारा होता,
नाहक ही सजदों में गुजारी है ये उम्र|
ज़रा आहिस्ता निकाले दीवाने का जनाज़ा,
ज़िन्दगी देके पायी है ये उम्र|
वीर,
समझो इन्हें इनायतें ज़िन्दगी,
गिले शिकवों ने सजाई है ये उम्र|
Filed under: कविताएँ, हिन्दी कविता, ग़ज़ल, Ghazals, Hindi Poetry, Poem, Shayari, Sher | Tagged: उम्र | Leave a comment »