खामोश ज़हन में कैद बेचैनी है,
हमने लबों पे मुस्कुराहट पहनी है|
मत करो ज़ाया अपने जज़्बात तुम,
तकलीफ मेरी मुझे ही सहनी है|
हमने लबों पे मुस्कुराहट पहनी है|
धुऐं से चुभते हैं मरासिम खोकले,
बेबस आंखें रात भर बहनी है|
हमने लबों पे मुस्कुराहट पहनी है|
इल्म होता मेरी बेखुदी का उसे,
क्यों ज़रूरी हर बात कहनी है|
हमने लबों पे मुस्कुराहट पहनी है|
बयां ना कर खलिश ‘वीर’,
दुनिया जो है वही रहनी है|
हमने लबों पे मुस्कुराहट पहनी है|
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