इंतज़ार के सलीके

तहज़ीब की किताब में,
ऐसा कोई पन्ना नहीं,
देखे कोई जख्म-ऐ-दिल,
ऐसा कोई चश्मा नहीं|
जिसके माने खुद न समझे, समझेंगे वो क्या समझाए किसीके|
जवानी-ऐ-रकीब, अभी सिकने है तुम्हे,
इंतज़ार के सलीके|

न जाने कितने ज़ख्म छुपाये किस दिल ने,
यु हीं न जाओ पास किसी के,
अभी सिखने है तुम्हे,
इंतज़ार के सलीके|

थोड़ी बेरुखी रखो, अपनी फितरत में,
ख्वाब पत्थर नहीं, महल हैं शीशे के,
अभी सिखने है तुम्हे,
इंतज़ार के सलीके|

चेहरे से न जाहिर हो,
तेरी घुटन का लिबास|
आँखों से बह ना आये,
उनसे मिलने की प्यास|
दिल का हाल सुना न दें,
खामोश लब किसीके,
अभी सिखने है तुम्हे,
इंतज़ार के सलीके|

मैं छुपा नहीं लफ्जों में,
ग़ज़लों में ढूँढो न मेरे जज़्बात|
गुम है एक चेहरे में, मेरे दिन, मेरी रात|
निकल न जाए दम मेरा,
सुला दो मुझे बाहों में उसके|
ना सिखा था मजनू, ना सीखेगा ‘वीर’,
इंतज़ार के सलीके|