बेरुखी अदा कब से हो गयी

बेरुखी अदा कब से हो गयी,
गिला बददुआ कब से हो गयी|

ऐतराज़ ना ज़ाहिर किया जो,
ख़ामोशी रज़ा कब से हो गयी|
बेरुखी अदा कब से हो गयी…

कराह उठे हम ज़ख्मों से,
चीख सदा कब से हो गयी|
बेरुखी अदा कब से हो गयी…

उस लम्हे का इल्म नहीं,
जिंदिगी सज़ा कब से हो गयी|
बेरुखी अदा कब से हो गयी…

सुखी रहती हैं बारिशों में भी,
आंखें खफा कब से हो गयी|
बेरुखी अदा कब से हो गयी…

ये तो फितरत ही थी हमारी,
आवारगी बला कब से हो गयी|
बेरुखी अदा कब से हो गयी…

बदल दिए मायने मोहब्बत के,
बंदगी वफ़ा कब से हो गयी|
बेरुखी अदा कब से हो गयी…

रौशन थी इनसे राहें कभी,
उम्मीदें धुआं कब से हो गयी|
बेरुखी अदा कब से हो गयी…

कहाँ खो गयी पहचान ‘वीर’,
खुदी जुदा कब से हो गयी|
बेरुखी अदा कब से हो गयी…

दिल आज भी तुझ पे फ़िदा है

कुछ तो अब भी तुझ से जुड़ा है,
के दिल आज भी तुझ पे फ़िदा है|

उसकी नज़र-ए-करम असां नहीं,
वो ऐसे ही नहीं मेरा खुदा है|
के दिल आज भी तुझ पे फ़िदा है…

बस एक हाथ की दूरी और हम,
वो मिलकर भी नहीं मिला है|
के दिल आज भी तुझ पे फ़िदा है…

चुभता रहा आँखों में देर तलक,
जाने क्या कुछ जल बुझा है|
के दिल आज भी तुझ पे फ़िदा है…

ये समझ गए हैं मेरे यार अब,
मेरी संगत का अंजाम बुरा है|
के दिल आज भी तुझ पे फ़िदा है…

सच सीधा सदा ही तो है,
हर कोई अपनी मौत ही मरा है|
के दिल आज भी तुझ पे फ़िदा है…

अब इसका जवाब लाऊं कहाँ से,
सवाल जो मेरे आगे खड़ा है|
के दिल आज भी तुझ पे फ़िदा है…

कुछ तो खता होगी तेरी भी ‘वीर’,
जो उसके होठों पर सिर्फ गिला है|
के दिल आज भी तुझ पे फ़िदा है…

तू भी बेवफा निकला साये सा ‘वीर’,
मेरा होकर भी मुझसे जुदा है|
के दिल आज भी तुझ पे फ़िदा है…

तेरे कुछ आंसू

तेरे कुछ आंसू मेरी आँखों से छलक गए,
मेरे दिल में कुछ शोले से भड़क गए|

ना मिला हवाओं का आसरा भी इन्हें,
गम के बादल ज़हन में अटक गए|
तेरे कुछ आंसू मेरी आँखों से छलक गए…

क्यों थामता है उसी का दामन फिर,
जिनकी नज़र को भी तुम तरस गए|
तेरे कुछ आंसू मेरी आँखों से छलक गए…

देख कर घरों की दरारों को ‘वीर’,
हम रास्ते भी तुझ से भटक गए|
तेरे कुछ आंसू मेरी आँखों से छलक गए…

अब सच भी बोलो तो नाप तोलकर ‘वीर’,
तेरे सफ़ेद झूटों से आईने चटक गए|
तेरे कुछ आंसू मेरी आँखों से छलक गए…

सूखे अश्कों के दाग

कल रात यादों से हम इतने आबाद थे,
सुबह तकिये पर सूखे अश्कों के दाग थे|

चादर से ढांक रखी थी हमने हकीकत,
और खुली आँखों के ख्वाब आज़ाद थे|
सुबह तकिये पर सूखे अश्कों के दाग थे…

बस तुम ही समाये थे हर लम्हे में,
तुम ही ख़ामोशी और तुम ही आवाज़ थे|
सुबह तकिये पर सूखे अश्कों के दाग थे….

मेरी दुआओं का इतना ही तो दायरा था,
तूम ही अंजाम और तुम ही आगाज़ थे|
सुबह तकिये पर सूखे अश्कों के दाग थे….

मजबूर रखा वक़्त और किस्मत को,
‘वीर’ हम तो बचपन से ही बरबाद थे|
सुबह तकिये पर सूखे अश्कों के दाग थे….

मंजिलों से रास्ता लेकर

हम भागते रहे मंजिलों से रास्ता लेकर,
वो जुड़ते रहे दिलों में फासला लेकर|

तोड़ कर हमने फिर पहनली जंजीरें,
वो फिर आ गए वही वास्ता लेकर|
हम भागते रहे मंजिलों से रास्ता लेकर…

इन आँखों को अब रंग नहीं दिखते,
बस जमी है एक तस्वीर माजरा लेकर|
हम भागते रहे मंजिलों से रास्ता लेकर…

बीती रात हुआ फिर वही ना ‘वीर’,
रोये हम दीवारों का आसरा लेकर|
हम भागते रहे मंजिलों से रास्ता लेकर…

अब इसे रुसवाई कैसे समझे ‘वीर’,
वो जुदा हुआ होठों पे कुछ कांपता लेकर|

नज़र मिलायें तो मिलायें कैसे

बेरुखी का सबब बतायें तो बतायें कैसे,
तुमसे नज़र मिलायें तो मिलायें कैसे|

कोई शख्स हो तो भुल भी जायें हम,
खुदको खुदसे भुलायें तो भुलायें कैसे|
तुमसे नज़र मिलायें तो मिलायें कैसे…

जिसकी तामीर में उम्र गुज़ार गयी,
उस घर को छोडके जायें तो जायें कैसे|
तुमसे नज़र मिलायें तो मिलायें कैसे…

आँखों में तस्वीर सा है मरासिम जो,
उस तस्वीर को मिटायें तो मिटायें कैसे|
तुमसे नज़र मिलायें तो मिलायें कैसे…

मायूस बच्चे सा दिल बस वहीँ अटका है,
बिना उसके इसे बहलायें तो बहलायें कैसे|
तुमसे नज़र मिलायें तो मिलायें कैसे…

उसने मुह मोड़ लिया अब तुझसे ‘वीर’,
तू ही बता अब उसे मनायें तो मनायें कैसे|
तुमसे नज़र मिलायें तो मिलायें कैसे…

इतनी मोहब्बत थी तुझसे ‘वीर’ हमें,
तेरी लाश को अब जलायें तो जलायें कैसे|
तुमसे नज़र मिलायें तो मिलायें कैसे…

बिछड़ा यार नहीं मिलता

खुदा भी शायद नाराज़ है हमसे,
मिन्नतों से बिछड़ा यार नहीं मिलता|

इसमें कहाँ पहले सी बात रही,
अब शराबों से खुमार नहीं मिलता|
मिन्नतों से बिछड़ा यार नहीं मिलता…

मिलते हैं रिश्ते विरासत में यहाँ,
हर रिश्ते में लेकिन प्यार नहीं मिलता|
मिन्नतों से बिछड़ा यार नहीं मिलता…

मिलती नहीं है मौत से मोहलत कोई,
फिर कोई शख्स क्यों तैयार नहीं मिलता|
मिन्नतों से बिछड़ा यार नहीं मिलता…

कुछ गुलों की किस्मत मुझ जैसी है,
ज़मीन तो मिली मगर गुलज़ार नहीं मिलता|
मिन्नतों से बिछड़ा यार नहीं मिलता…

बहा देना सब गर मिले कोई दामन काबिल,
अश्कों को ये मौका बार बार नहीं मिलता|
मिन्नतों से बिछड़ा यार नहीं मिलता…

क्या शिकायत किजीये किसी से ‘वीर’,
हम आवारों को कहीं दयार नहीं मिलता|
मिन्नतों से बिछड़ा यार नहीं मिलता…

अब लाया है मर्ज़ ए इश्क का इलाज़ ‘वीर’,
जब शहर में उसे कोई बीमार नहीं मिलता|
मिन्नतों से बिछड़ा यार नहीं मिलता…

दुआ में असर रहे

कभी तो दुआ में असर रहे,
कभी तो उसकी हम पर नज़र रहे|

मैं तोड़ दूंगा सारी बंदिशें सनम,
तुझमें साथ चलने का जिगर रहे|
कभी तो दुआ में असर रहे…

बेखुदी उलझा ले चाहे जितना,
तुम्हे जिंदिगी की तो कदर रहे|
कभी तो दुआ में असर रहे…

पत्थर पर्वत नदी हो या तूफ़ान,
बस चलते जाने का हुनर रहे|
कभी तो दुआ में असर रहे…

आवारगी जब भी करे गुमराह,
घर तक जाती कोई डगर रहे|
कभी तो दुआ में असर रहे…

प्यार भी होता मौत सा अगर,
हर वक्त बस मुयास्सर रहे|
कभी तो दुआ में असर रहे…

उन्ही लहरों से डूबे तुम ‘वीर’,
जिनसे खेलते तुम अक्सर रहे|
कभी तो दुआ में असर रहे…

ना सुध है ज़माने की ना सही,
खुदको खुदकी तो खबर रहे|
कभी तो दुआ में असर रहे…

पथरीले रास्तों से क्या डरना,
बात कुछ और गर हमसफ़र रहे|
कभी तो दुआ में असर रहे…

सब हासिल कितना बेरंग होगा,
कुछ तो जिंदिगी में कसर रहे|
कभी तो दुआ में असर रहे…

गर ना रहे मेहकता प्यार से,
घर में सुकून की तो बसर रहे|
कभी तो दुआ में असर रहे…

यही मुनासिब है आदमी के लिए,
अपनी राह पर सर बसर रहे|
कभी तो दुआ में असर रहे…

जो नहीं तेरे दिल में आशियाँ,
बता दे अब ‘वीर’ किधर रहे|
कभी तो दुआ में असर रहे…

जवां हो जाने की

अहिस्ता रख ज़ख्मों पर हाथ सनम,
इनकी तासीर है जवां हो जाने की|

शमा-ए-मोहब्बत ना रहेगी उम्र भर,
इसकी किस्मत है धुआं हो जाने की|
इनकी तासीर है जवां हो जाने की..

हर वक्त क्या ढूँढता है लोगों में तू,
तुझे बिमारी है गुमां हो जाने की|
इनकी तासीर है जवां हो जाने की…

मत कर महसूस इतना हर बात को ‘वीर’,
गिलों की आदत है जमा हो जाने की|
इनकी तासीर है जवां हो जाने की…

कौन कब तलक संभालेगा तुझे ‘वीर’,
तेरी फितरत ही है फना हो जाने की|
इनकी तासीर है जवां हो जाने की…

प्यार के चंद किस्से हैं

प्यार के चंद किस्से हैं,
सब मेरे ही हिस्से हैं|

एक ही अंजाम सबका,
खामोश हम सिसके हैं|
प्यार के चंद किस्से हैं…

वो समझा नहीं हमें,
हुए हम पूरे जिसके हैं|
प्यार के चंद किस्से हैं…

अब अपना कुछ कहाँ,
हम जो हैं सब उसके हैं|
प्यार के चंद किस्से हैं…

कोई ग़ज़ल नहीं जिंदिगी,
बिखरे हुए कुछ मिसरे हैं|
प्यार के चंद किस्से हैं…

कहानी का तू किरदार नहीं ‘वीर’,
यहाँ बस तेरे कुछ ज़िक्रे हैं|
प्यार के चंद किस्से हैं…

कहने दो ना जिंदिगी

वहमों में रहने दो ना जिंदिगी,
कहने को कहने दो ना जिंदिगी|

ग़मों का दरिया या गिलों की बारिश,
हमें हर हाल में बहने दो ना जिंदिगी|
कहने को कहने दो ना जिंदिगी…

सब दिखता है मेरे अलावा मुझको,
मुझे कुछ नए आईने दो ना जिंदिगी|
कहने को कहने दो ना जिंदिगी…

आसान ना होगा

नाज़ुक दिल में सितमगर रखना आसान ना होगा,
उसकी बेरुखी से कब तू वीर परेशान ना होगा|

शायद वहम ही हो उसकी मोहब्बत दोस्त मगर,
वहम के बगैर भी दिल को आराम ना होगा|
नाज़ुक दिल में सितमगर रखना आसान ना होगा…

माना मशहूर है किस्सा मेरी वफ़ा का यारों,
कौन आशिक शहर में बदनाम ना होगा|
नाज़ुक दिल में सितमगर रखना आसान ना होगा…

एक आशियाँ के हैं तलबगार कितने यहाँ,
बात और के सबको कबूल ये अंजाम ना होगा|
नाज़ुक दिल में सितमगर रखना आसान ना होगा…

यूँ तो शराब भी है और महफ़िल भी यहाँ,
बस मेरे हाथों में तेरा दिया जाम ना होगा|
नाज़ुक दिल में सितमगर रखना आसान ना होगा…

मैं खामोश ही सह लूँगा तेरे सब सितम,
मेरे होठों पे मगर कोई इलज़ाम ना होगा|
नाज़ुक दिल में सितमगर रखना आसान ना होगा…

बस ज़ाहिर है ज़बीं की लकीरों से ‘वीर’,
तेरी जुबां से ये काम ना होगा|
नाज़ुक दिल में सितमगर रखना आसान ना होगा…

जो धड़कता है वो बुझ भी जायेगा,
आखिर कब तलक ये तमाम ना होगा|
नाज़ुक दिल में सितमगर रखना आसान ना होगा…

तोड़ दे दिल इस बार ऐसे मेरे खुदा,
बंदे को फिर कभी ये गुमान ना होगा|
नाज़ुक दिल में सितमगर रखना आसान ना होगा…

तू रहा यूँ ही अगर फितरत से उखड़ा ‘वीर’,
तेरी किस्मत में एक भी रस्मी सलाम ना होगा|
नाज़ुक दिल में सितमगर रखना आसान ना होगा…

लिखते लिखते बेचैन हो गया है ‘वीर’,
अब और उससे कलाम ना होगा|
नाज़ुक दिल में सितमगर रखना आसान ना होगा…

तेरी कांपती उँगलियाँ

मेरे जबीं पर तेरी कांपती उँगलियाँ,
जैसे सूखे फूल पर नाचती तितलियाँ|

कितना कुछ समाया था सायों में,
गूंजती रही देर तलक खामोशियाँ|
मेरे जबीं पर तेरी कांपती उँगलियाँ…

ख्यालों से बेपनाह मोहब्बत तक,
क्या क्या ना था हमारे दरमियाँ|
मेरे जबीं पर तेरी कांपती उँगलियाँ…

वक्त को रुसवा कर गयी मोहब्बत,
ढूँढ रहा था वो अपनी खोई कश्तियाँ|
मेरे जबीं पर तेरी कांपती उँगलियाँ…

तू पहला तो नहीं है ना ‘वीर’,
कितनों ने की है फ़ना हस्तियाँ|
मेरे जबीं पर तेरी कांपती उँगलियाँ..

कोई तो है जिसने सुना तुझे ‘वीर’,
वरना दम तोड़ देती तेरी सिसकियाँ|
मेरे जबीं पर तेरी कांपती उँगलियाँ…

मेरे नाम का अश्क

दबी हुई मुस्कुराहट से छुपाया तो था,
मेरे नाम का अश्क आँखों तक आया तो था|

वो बिखरता ही चला गया लम्हा लम्हा,
मैंने उसे गले ज़रूर लगाया तो था|
मेरे नाम का अश्क आँखों तक आया तो था…

शायद वीराना हो जाए वक्त के साथ,
हमने आरजू का एक घर बनाया तो था|
मेरे नाम का अश्क आँखों तक आया तो था…

अगले मौसम फिर ना खिले दर्द का फूल,
तेरे साथ गुज़ारे पल में ये मुरझाया तो था|
मेरे नाम का अश्क आँखों तक आया तो था…

ये नज़ारे रहेंगे गवाह सदियों,
हमने इन वादियों में कुछ सजाया तो था|
मेरे नाम का अश्क आँखों तक आया तो था…

मिला थोड़ी देर से मगर मिला तो ‘वीर’,
वो शख्स जिसे तुमने सालों बुलाया तो था|
मेरे नाम का अश्क आँखों तक आया तो था…

लम्हा लम्हा

लम्हा लम्हा जोड़ कर ज़माना बना लिया,
कभी खत्म ना हो ऐसा फ़साना बना लिया|

चाहत में पिरो के हसीन लम्हों को,
वक्त को खुदसा दीवाना बना लिया|
लम्हा लम्हा जोड़ कर ज़माना बना लिया…

कुछ बेख्याल हूँ आज शाम से,
खुदको खुदसे बेगाना बना लिया|
लम्हा लम्हा जोड़ कर ज़माना बना लिया…

तेरे साथ को महफ़िल तेरी ख़ामोशी को साज़,
तेरी आँखों को हमने पैमाना बना लिया|
लम्हा लम्हा जोड़ कर ज़माना बना लिया…

महकता हूँ तेरी खुशबू से अब तलक,
धडकन को तेरा तराना बना लिया|
लम्हा लम्हा जोड़ कर ज़माना बना लिया…

हर नए एहसास का तू गुनाहगार है ‘वीर’,
तेरी खलिश ने इसे ज़क्म पुराना बना लिया|
लम्हा लम्हा जोड़ कर ज़माना बना लिया…

था हँसता हुए शहर सा तेरा ज़हन ‘वीर’,
तेरी फितरत ने इसे वीराना बना दिया|
लम्हा लम्हा जोड़ कर ज़माना बना लिया…

तेरे दर्द की क्या कोई कीमत है ‘वीर’,
उसकी मोहब्बत ने इसे खज़ाना बना दिया|
लम्हा लम्हा जोड़ कर ज़माना बना लिया…

मुन्तज़िर नाउम्मीद

मुन्तज़िर नाउम्मीद से हो गए थे हम,
मौत के कितने करीब हो गए थे हम|

खैर सांसे रहते आप लोट तो आये,
अकेले कितने अजीब हो गए थे हम|
मौत के कितने करीब हो गए थे हम…

उसका ज़िक्र बातों में ढूँढते रहे ‘वीर’,
नदीम अपने रकीब के हो गए थे हम|
मौत के कितने करीब हो गए थे हम…

अब नहीं मुझे अपनी कोई खबर

तू घुल गया मुझमें इस कदर,
अब नहीं मुझे अपनी कोई खबर|

एक पल भी नहीं जुदाई गवारा,
पहले नहीं था मैं इतना बेसबर|
अब नहीं मुझे अपनी कोई खबर…

सारी खुदाई सारी खुदी फ़ना होगी,
तुम मिलो जाओ इस लम्हा अगर|
अब नहीं मुझे अपनी कोई खबर…

यूँ तो आते हैं हमें बहाने कई,
जी लेंगे मुर्दों से, कर लेंगे बसर|
अब नहीं मुझे अपनी कोई खबर…

कहते हैं कहीं खो गया है ‘वीर’,
यार इतने ना थे मुझसे बेखबर|
अब नहीं मुझे अपनी कोई खबर…

सौदा

बस कीमत का फर्क है,
यहाँ सब बिकता है|
यह सौदा ठीक लगता है…

उनको झूठा अदब देकर,
उनसे झूटी इज्ज़त लेकर,
इतना अकडकर चलता है|
यह सौदा ठीक लगता है…

हर दिन की कश्मकश,
हर रात का काला सच,
लम्हा लम्हा मरता है|
यह सौदा ठीक लगता है…

अकेला घिरा भीड़ में,
तन्हा फिरा भीड़ में,
खुदसे इतना डरता है|
यह सौदा ठीक लगता है…

कभी उसे कोने में फेका,
कभी उन्हें कोने से देखा,
मायूस दिल आरजू करता है|
यह सौदा ठीक लगता है…

कातिल बना गयी

मेरी कमज़ोरी मेरा दामन जला गयी,
मेरी खुदी मुझे कातिल बना गयी|

मेरी मोहब्बत शायद काफी ना थी,
मेरी फितरत मुझे नाकाबिल बना गयी|
मेरी खुदी मुझे कातिल बना गयी…

तुम मेरे नुस्क ना संभाल पाये,
मेरी आवारगी मुझे साहिल बना गयी|
मेरी खुदी मुझे कातिल बना गयी…

खुदा तुमने बस एक दिल ही तो दिया,
मेरी इबादत मुझे काफ़िर बना गयी|
मेरी खुदी मुझे कातिल बना गयी…

मैं तो बस मिट गया तेरी वफ़ा में,
आरजू मुझे हासिल बना गयी|
मेरी खुदी मुझे कातिल बना गयी…

चलो तेरी कहानी से ये तो हुआ ‘वीर’,
कितनो को ये प्यार के काबिल बना गयी|
मेरी खुदी मुझे कातिल बना गयी…

तेरा हिस्सा कोई

मेरे ज़हन से लिपटा तेरा हिस्सा कोई,
लफ़्ज़ों की तलाश में भटकता किस्सा कोई|

जब नोचती है दुनिया मेरे सहमे दिल को,
मुझे सीने से लगा लेता है तेरा हिस्सा कोई|

ज़ुल्म ए फ़िराक से कब टूटा है ‘वीर’,
जोड़ देता है फिर खुदसे तेरा हिस्सा कोई|